Tabassum

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गांव की पीड़ा


गांव की पीड़ा 

              मैं गाँव हूँ।मैं तुम्हारा वही गाँव हूँ जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे!

              मैं तुम्हारा वही गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है।मैं वही गाँव हूँ जहां के लोगों पर असभ्य और जाहिल गॅंवार होने के भी आरोप लगते रहते हैं।

           हाँ ,मैं वही गाँव हूँ जिस पर तमाम आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े-बड़े शहरों में चले गए ।

      पर मैं तुम्हें क्या बताउं???जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं ,मैं रात भर सिसक-सिसक कर रोता हूँ पर मैं फिर भी मरा नहीं।मन में एक आश लिए ,आज भी निर्निमेष पलकों से मैं बाट जोहता रहता हूँ कि शायद मेरे बच्चे आ जायँ।उन्हें एक झलक देखने की ललक में मैं सोता भी नहीं हूँ ।लेकिन हाय! जो जहाँ गया ,वह वहीं का होकर रह गया।

           मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से कि क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो?अरे मैंने तो तुम्हें कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़कर शहर के ही हो गए?

     मैं पूछता हूं तुमसे कि मेरा हक कहाँ है?क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर,मकान,बड़ा स्कूल,कालेज,इन्स्टीट्यूट,अस्पताल आदि बनाने का अधिकार नहीं है?ये अधिकार मात्र शहर को ही तुमने क्यों दिए हैं?जब तुम अपनी सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो फिर मैं कहाँ जाऊँ????मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता??

       कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे थे।गाड़ी नहीं मिली तो सैकड़ों मील पैदल ही बीबी-बच्चों के साथ चल दिये।आखिर क्यों???

          जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ कर शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे, वो किस आश व विश्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे????

          मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विश्वास रहा होगा कि अगर गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा।

           सच भी यही है कि गाँव कभी भी किसी को भी भूख से नहीं मारता।हाँ मेरे लाल!आ जाओ, मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा ।

            आओ ,मुझे फिर से सजाओ।मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ।मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ।मेरे खेतों में अनाज उगाओ।खलिहानों में बैठकर आल्हा गाओ।

            खुद भी खाओ और दुनिया को भी खिलाओ।महुआ,पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ,गोपालन करो।मेरे नदी ताल तलैया, बाग,बगीचे गुलजार करो।

            बच्चू बाबा की पीस-पीस कर प्यार भरी गालियाँ , रामजनम काका के उटपटांग डायलाग्स , पंडिताइन की अपनापन वाली खीज और पिटाई , दशरथ साहू की आटे की मिठाई ,हजामत और मोची की दुकान, भड़भूजे की सोंधी महक,लईया,चना कचरी, होरहा,बूट,खेसारी सब आज भी तुम्हें पुकार रहे हैं ।

            मुझे पता है कि वो तो आ जाएंगे जिन्हें मुझसे प्यार है लेकिन वो????वो क्यों आएंगे जो शहर की चकाचौंध में कहीं विलीन से हो गए?वहीं अपने घर मकान सब बना लिए?सारे पर्व,त्यौहार, संस्कार वहीं से करते हैं?मुझे बुलाना तो दूर,मुझे तो पूछते तक नहीं हैं।लगता है कि अब मेरा उनपर कोई अधिकार ही नहीं बचा है?

      अरे अधिक नहीं ,तो कम से कम होली- दिवाली में ही आ जाते तो मेरा थोड़ा सा दर्द कम हो जाता।सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न?कम से कम मुण्डन , जनेऊ,शादी और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते!आखिर मैंने तुम्हारे बचपन को संवारा है!मेरे ही गोद में खेलकर तुम बड़े हुए हो।मैंने ही तुम्हें कठिनाइयों से लड़ना सिखाया है ,मेहनती और मजबूत बनाया है।अगर तुम भी अपने बच्चों की तरह शहर में पैदा हुए होते तो बस डबल रोटी की ही तरह होते - ऊपर से फूला हुआ ,सुंदर व मजबूत पर अंदर से बिलकुल खाली-खाली।

        अरे ,तुमने तो गाॅंव में पलकर भी अपनी जिंदगी में एक मुकाम पा लिया पर देखना जैसा समय चल रहा है ,तुम्हारे बच्चे उतना भी नहीं कर पाएंगे जितना कुछ तुमने हासिल किया और अगर वे उस लायक बन भी गये तो वे तुम्हें छोड़कर उसी तरह विदेश भाग जाएंगे जैसे तुम गांव छोड़कर परदेशी बन गये हो।

          तुम्हारी ऊंची महत्त्वाकांक्षाओं ने तुम्हें गाॅंव छोड़कर परदेशी बना दिया ,तेरे बच्चों की ऊंची महत्त्वाकाक्षाएं उन्हें विदेशी बना देंगी।देखना एक दिन वे तुम्हें भी छोड़कर उसी तरह चले जाएंगे जिस तरह तुम मुझे छोड़कर चले गये हो।

        अरे!तुमने भले मुझे छोड़ दिया हो पर मैंने तुम्हें कभी नहीं छोड़ा।तुम जब भी यहां भूले- भटके भी पहुंचे ,मैंने बांहें फैलाकार तुम्हारा स्वागत किया।तुम्हें हर तरह की खुशियां दी क्योंकि मैंने तुम्हें जन्म दिया है न?पूत भले कपूत हो जाय,माता कैसे कभी कुमाता हो सकती है??तुम भले ही निष्ठुर व निर्दयी हो गये हो ,पर मैं कैसे निष्ठुर व निर्दयी हो सकता हूं पर तुम देखना ,तेरे कर्मों की सजा तुझे जरूर मिलेगी।

         तेरे बच्चे अगर तेरी तरह लायक बन गये तो वे तुझे केवल छोड़कर ही नहीं,तुमसे मुॅंह मोड़कर ,तुमसे बहुत दूर ,बहुत दूर चले जाएंगे फिर तुम या तो अपने आलीशान भूतिया मकान में अकेले रहना या फिर किसी वृद्धाश्रम के किसी कोने में पड़े सिसकते रहना‌।अगर तुम अपने अंत समय में यहां आना भी चाहो तो फिर तुम यहां रह नहीं पाओगे ,टिक नहीं पाओगे क्योंकि न तुम किसी को पहचान पाओगे और न कोई और तुम्हें पहचानेगा।तुम्हें अपने ही गाॅंव में , अपनी ही घर में अजनबियों की तरह रहना पड़ेगा जो तुमसे नहीं हो पाएगा।

        शहर में तो एक ही अपार्टमेन्ट में आजू- बाजू के फ्लैट में रहकर भी तुम अजनबी बन कर बड़े आराम से रह लेते हो क्योंकि वहां तेरे बीवी-बच्चे हैं, कुछ दोस्त- यार हैं पर यहां तो कोई तुम्हें पहचानेगा भी नहीं।पहचानेंगे भी कैसे ,जब उन्होंने तुम्हें कभी देखा ही नहीं।जिन्होंने तुम्हें देखा है ,वे तो ऊपर पहुंच गये ,जो बचे हैं उनके आंख-कान अब वैसी स्थिति में नहीं हैं‌।तेरे बच्चे व परिवार तेरे साथ होंगे नहीं फिर तुम कैसे अकेले रह पाओगे??इसीलिए कहता हूं कि किसी न किसी बहाने से कभी-कभी यहां भी आया करो।

     मैं तुम्हें कोई शाप नहीं दे रहा।मां-बाप बच्चे को कभी शाप दे भी नहीं सकते ,चाहे संतान कितना भी नालायक क्यों न निकल जाय।मैं तो तुम्हें केवल सच्चाई बताना चाह रहा हूं।जन्मदाता होने के नाते तुम्हें एक कड़वी सच्चाई से बस आगाह करना चाह रहा हूं।मैं जैसा देख रहा हूं ,वैसा तुम्हें बता रहा हूं इसलिए मुझे कभी गलत मत समझना।
 
             मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है,बल्कि आज यह मेरी आवश्यकता भी है।अगर तुम अपनी कमाई का कुछ हिस्सा गॉंव पर भी खर्च करो तो तेरे गरीब भाई-बहन ,मेरे गरीब बच्चे ,जो रोजी-रोटी की तलाश में मुझसे दूर चले जाते हैं,उन्हें भी यहीं गांव में रोजगार मिल जाएगा।फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़ेगा।

        मेरे बच्चों!मैं आत्मनिर्भर बनना चाहता हूँ।मैं अपने बच्चों को शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षित और संस्कारित कर सकता हूँ‌।मैं बहुतों को यहीं रोजी-रोटी भी दे सकता हूँ ।

          मैं तुम्हें जिंदगी के तमाम तनाव से भी दूर रखूंगा।मैं तुम्हारे लिए प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ।मैं तुम्हारे लिए सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल!बस तू किस न किस बहाने से समय-समय पर आया तो कर मेरे पास।अपने बीबी-बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा।दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दे।

      फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी , त्यौहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल ,अपने मोची के जूते और दर्जी के सिले कपड़े पर इतराने की आदत डाल,हलवाई की मिठाई ,खेतों की हरी सब्जियाँ ,फल-फूल,गाय का दूध , बैलों की खेती पर विश्वास रख।तुम कभी संकट में नहीं पड़ेगा।

     अगर हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है मेरे लाल ,तो मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर।तू भी खुश और मैं भी खुश ।
        

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5 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 11:07 PM

👏👏

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kashish

09-Mar-2024 02:06 PM

V nice

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Varsha_Upadhyay

08-Mar-2024 09:49 AM

Nice

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